Wednesday, October 12, 2022

जगने लगा हूँ, समझने लगा हूँ

जगने लगा हूँ , समझने लगा हूँ 

जिस 'नींद' में ख़्वाब आते बहुत थे 

उस नींद से अब मैं जगने लगा हूँ ।

जो  ख़्वाब 'हसीन' लगते  कभी थे

उस  ख़्वाब से अब बचने लगा हूँ ।

देखा  करीब  से जब  'ज़िंदगी' को

इसे  और बेहतर  समझने लगा हूँ।

उड़ता था शायद  मैं ऊँची बयार में 

ज़मी पर अब  पाँव रखने लगा  हूँ।

लफ़्ज़ों की मुझे  अब ज़रूरत नहीं 

चेहरों को जब से मैं पढ़ने लगा हूँ।

थक जाता हूँ अक्सर  जब शोर से

तन्हाइयों से बातें मैं करने लगा हूँ।

बदलते  आलम-ए अक्स  देखकर

शायद कुछ मैं भी बदलने लगा हूँ।

परवाह  नहीं, कोई साथ आए मेरे 

मैं अकेले ही  आगे बढ़ने लगा हूँ ।

जब मिला न किसी हाथ का साथ

मैं खुद ही नया कुछ गढ़ने लगा हूँ।।

   - शुभ 

Sunday, July 3, 2022

 पाठ्य-सहगामी क्रियाएँ (CO CURRICULAR ACTIVITIES): उद्देश्य, महत्त्व एवं सिद्धांत


पाठ्य-सहगामी क्रियाओं से आशय उन क्रियाओं से है जो पाठ्यक्रम के साथ-साथ विद्यालय में करायी जाती हैं। इन क्रियाओं का उतना ही महत्व है, जितना कि कक्षा में पढ़ायी जाने वाली पाठ्य-वस्तु।


उद्देश्य-पाठ्य सहगामी क्रियाओं के उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

1. पाठ्य-सहगामी क्रियाओं का सर्वप्रथम उद्देश्य छात्रों को प्रजातंत्र तथा नागरिकता की शिक्षा प्रदान करना है।

2. छात्रों का सर्वतोन्मुखी विकास करना।

3. छात्रों को स्वशासन की शिक्षा प्रदान करना।

4. समाज और विद्यालय के महज आपसी सम्बन्धों को सुदृढ़ करना।

5. छात्रों की रूचियों का सही मार्गदर्शन करना।

            शिक्षा में मनोविज्ञान के प्रवेश से पूर्व शिक्षा का उद्देश्य केवल मानसिक वृद्धि करना था। उस समय विद्यालयों में किताबी ज्ञान एवं शिक्षा प्रदान की जाती थी, लेकिन आप शिक्षा का उद्देश्य बालकों का केवल मानसिक विकास करना ही नहीं, बल्कि मानसिक विकास के साथ-साथ शारीरिक, सांस्कृतिक एवं नैतिक विकास करना भी है।


महत्त्व 

अब विद्यालयों के पाठ्यक्रम में शिक्षण के अलावा अन्य क्रियाओं को भी महत्त्व दिया जा रहा है। पाठ्य सहगामी क्रियाओं का महत्त्व निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट है-

1. छात्रों में निहित प्रतिभाओं की खोज एवं विकास- पाठ्य-सहगामी क्रियाओं के माध्यम से छात्रों में निहित विभिन्न प्रतिभाओं की खोज कर उन्हें उजागर किया जा सकता है।

2. अतिरिक्त शक्तियों का समुचित उपयोग- छात्रों की अतिरिक्त शक्तियों का समुचित उपयोग, उनकी अतिरिक्त शक्तियों का समुचित उपयोग इन क्रियाओं द्वारा होता है।

3. शैक्षिक दृष्टि से महत्व- इनके माध्यम से छात्र परस्पर सहयोग, प्रेम, सद्भावना, मेल-मिलाप, सहकारिता आदि गुणों का प्रशिक्षण प्राप्त कर सकते है।

4. विशेष रूचियों का विकास– पाठ्य-सहगामी क्रियाओं का वैविध्य छात्रों को अपनी ओर आकर्षित करता है वे अपनी रूचियों के अनुसार उन्हें अपनाते हैं। इस तरह उन्हें अपनी रूचियों को तृप्त करने का अवसर प्राप्त होता है।

5. सामाजिक दृष्टि से महत्व- इनका सामाजिक दृष्टि से भी बड़ा महत्व है, प्रतिनिष्ठा और कर्त्तव्यपरायणता से ओत-प्रोत होकर छात्र विद्यालय और राष्ट्र से प्रेम करना सीख जाता है।

6. नैतिक दृष्टि से महत्व- इन क्रियाओं का नैतिक दृष्टि से भी महत्व है। छात्र वफादारी और नियमों का पालन करना सीख लेते हैं।


पाठ्य-सहगामी क्रियाओं के संगठन के सिद्धान्त

पाठ्य-सहगामी क्रियाओं के लाभों को उचित और प्रभावशाली ढंग से उठाने के लिए यह आवश्यक है कि उनका संचालन ठीक प्रकार से किया जाए। इनके प्रभावशाली और उचित संगठन के लिये निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक है-

1. विद्यालय कार्य-काल में ही इनका संगठन हो— पाठ्य-सहगामी क्रियाएँ विद्यालय के कार्य-काल में ही संगठित की जाए। इस प्रकार की व्यवस्था से सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि अधिक से अधिक छात्र इन क्रियाओं में भाग ले सकेंगे। विद्यालय बन्द हो जाने के पश्चात् दूर रहने वाले छात्रों का इनमें भाग लेना सम्भव नहीं होगा। ऐसी दशा में अनेक छात्र लाभान्वित होने से वंचित रह जायेंगे। अतः विद्यालय के समय में ही पाठ्य-सहगामी क्रियाओं का आयोजन किया जाए तो उत्तम है।

2. छात्रों का अधिक से अधिक सहयोग- इन क्रियाओं के संगठन में यथासम्भव छात्रों का अधिक से अधिक सहयोग प्राप्त किया जाय। प्रत्येक क्रिया के संगठन और संचालन में छात्रों से सलाह लेना उचित है और उन पर कुछ उत्तरदायित्व भी डाले जाएँ।

3. शिक्षा और विद्यालय के उद्देश्य का ध्यान– पाठ्य-सहगामी क्रियाएँ केवल आनन्द प्रदान करने वाली न हों। वरन् इनका संगठन इस बात को ध्यान में रखकर किया जाए कि ये शिक्षा और विद्यालय के उद्देश्यों की अधिक से अधिक पूर्ति कर सकें।

4. उचित योजना का निर्माण-  विद्यालय में किसी भी पाठ्य-सामग्री क्रिया का संगठन इस बात का ध्यान में रखकर किया जाए कि ये शिक्षा और विद्यालय के उद्देश्यों की अधिक से अधिक पूर्ति कर सकें।

5. उचित चुनाव- इन क्रियाओं का उचित और उपयुक्त चुनाव ही इनके संगठन का महत्वपूर्ण पहलू है। इस विषय में निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक है—


(क) क्रियाओं में वैविध्य और व्यापकता होनी चाहिए, जिससे प्रत्येक छात्र अपनी रूचि के अनुकूल रूचियों का चयन कर सकें।

(ख) क्रियाएँ आवश्यकता से अधिक भी न हों।

(ग) अधिक व्ययपूर्ण क्रियाओं को स्थान नहीं दिया जाए।

(घ) उन पाठ्य-सहगामी क्रियाओं पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाए जिनका शिक्षा सम्बन्धी अधिक महत्व हो।

(ङ) क्रियाएँ साध्य न होकर साधन हों।

(च) क्रियाओं के चयन में स्थानीय वातावरण का अवश्य ध्यान रखा जाए।

6. पाठ्य-सहगामी क्रियाओं को अध्यापकों के कार्य का एक अंग माना जाए- अध्यापकों को इन क्रियाओं के विषय में यह ध्यान रखना कि ये भी पाठ्यक्रम का एक अंग हैं। अतः यदि उन पर इनका कार्य या उत्तरदायित्व सौंपा जाए, तो उसे वह शिक्षण का एक अंग मानकर स्वीकार करें। इनको उत्तरदायित्व का बोझ नहीं माना जाए। 

7. अध्यापक केवल मार्गदर्शन करें- जिस अध्यापक को पाठ्यक्रम-सहगामी क्रियाओं का संचालक बनाया जाए, उसे केवल मार्गदर्शन का ही कार्य करना चाहिए।

8. अध्यापक की अभिरुचियों का ध्यान रखा जाए  - पाठ्यक्रम-सहगामी क्रियाओं के उत्तरदायित्व का वितरण करते समय अध्यापकों की रूचियों का भी ध्यान रखा जाए।  

उपर्युक्त सभी उद्देश्यों एवं सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय विद्यालय, राष्ट्रपति परिसर में विद्यालय की प्राचार्या, उप प्राचार्य एवं मुख्याध्यापिका के कुशल निर्देशन, शिक्षकों के मार्गदर्शन एवं विद्यार्थियों की सक्रिय सहभागिता के साथ वर्षपर्यंत पाठ्य सहगामी क्रियाओं का सोद्देश्य एवं सफलतापूर्वक संचालन किया जाता है।

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नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन

 

नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन

आज का समय सूचना और तकनीक के क्रांति का  समय है|इस तकनीक के कारण हमारे चारों तरफ सूचनाएँ  बिखरी हुई पड़ी हैं|टी वी पर विज्ञापन आता है कि मन में उठने वाले हर वाजिब गैर वाजिब सवाल का जवाब गूगल के पास है|हालात तो ऐसे हो गए हैं कि छोटे बच्चों से लेकर युवाओं और वृद्धों तक किसी सवाल के जवाब के लिए किताब या शब्दकोश तक जाने की जहमत नहीं उठाते,सभी का जवाब नेट पर खोजना है|भरोसा सिर्फ गूगल बाबा का है|किताबें उपेक्षित हो रही हैं| ज्ञान के भंडार के स्रोत की परिभाषा बदल रही है या यह कहना ज्यादा उपयुक्त होगा कि बदल गयी है| तकनीकी क्रांति के सकारात्मक प्रभावों से कतई इंकार नहीं किया जा सकता किन्तु इसने शिक्षा और संस्कृति  के क्षेत्र में बहुत नुकसान भी पहुँचाया है| छात्रों की रचनात्मकता और भाषाई कौशल इससे नकारात्मक ढंग से प्रभावित हुआ है| स्वयं चिंतन मनन के उपरांत किसी तथ्य को प्राप्त करने कि बजाय छात्र कॉपी और पेस्टमें अधिक विश्वास करने लगे हैं|

      अप्रत्याशित लेखन की अवधारणा के मूल में यही चिंता अन्तर्निहित है-एकांगी हो रहे  भाषाई कौशल को नए सन्दर्भों और परिस्थितियों के अनुरूप विकसित करना एवं अपने भीतर के स्वत्व को पहचानना एवं किसी विषय पर मौलिक चिंतन करने की क्षमता को बाधित होने से रोकना अर्थात भीतर के उस सोता को फूटकर अभिव्यक्त हो जाने का अवसर देना जिसे सूचनाओं के अम्बार और दबाव के कारण स्वाभाविक रूप से अभिव्यक्त होने का अवसर नहीं प्राप्त हो पाता है| सरल शब्दों में कहा जाए तो अप्रत्याशित विषयों पर लेखन कम समय में अपने विचारों को संकलित कर उन्हें सुन्दर और सुघड़ ढंग से अभिव्यक्त करने की चुनौती है|

  विचार कीजिए कि आप अपने परिवार या मित्रों के साथ किसी स्थान की यात्रा पर कब गए थे ? शायद कुछ दिन या कुछ महीने पहले| वहाँ से आने के बाद आपके मन में उस स्थान के स्मृति चिह्न ज़रूर रहे होंगे| क्या वहाँ से आकर उस यात्रा के बारे मे आपने किसी से चर्चा की ? परिवार के दूसरे सदस्यों,मित्रों या पड़ोसियों से| अब सोचिए अपने उन स्मृति चिह्नों को आप शब्दों में पिरोकर एक व्यवस्थित लेख की शक्ल दे सकते हैं|

आप जब घूमने गए होंगे तो उसके पहले आपने काफी तैयारियाँ  की होंगी उस स्थान को लेकर यात्रा को आपके मन मे अनेक उत्सुकताएँ रही होंगी| यात्रा शुरू करने से लेकर यात्रा समाप्त होने तक अनेक रोमांचक अनुभव आपके अनुभव क्षेत्र में जुड़े होंगे,जैसे स्थल मार्ग से जाते हुए अनेक नए स्थलों बाज़ारों का दृश्य, दूर तक फैले खेत खलिहान नदी झरने पहाड़ों की ऊँची-  ऊँची चोटियाँ और अगर हवाई यात्रा हुई तो नीले आसमान मे बादलों के बीच उड़ते हुए नीचे नदियाँ, समंदर, पहाड़ों की बर्फीली चोटियाँ| क्या उन स्मृतियों को आप शब्दों के सहारे पन्नों पर उकेर सकते हैं? वास्तव मे यात्रा करना अलग बात है किन्तु यात्रा से प्राप्त अनुभव को रोचक तरीके से व्यवस्थित लेख के रूप मे शब्दबद्ध खासा चुनौतीपूर्ण है|

·        अप्रत्याशित शब्द का क्या अर्थ है?

जिसकी आशा की गई हो। (+प्रति+आशा+इत=अप्रत्याशित)

·        अप्रत्याशित विषयों पर लेखन क्या है?

ऐसे विषय जिसकी आपने कभी आशा भी की हो उस पर लेखन कार्य करना ही अप्रत्याशित विषयों पर लेखन कहलाता है। विषय कोई भी हो सकता है जो पहले से पढ़ा नहीं यानी रटा रटाया नहीं हो वही अप्रत्याशित लेखन का विषय हो सकता है।

·        पारंपरिक और अप्रत्याशित विषयों में अंतर-

पारंपरिक विषय वो विषय होते हैं जो किसी मुद्दे, विचार, घटना आदि से जुड़े होते हैं और अधिकतर सामाजिक और राजनीतिक विषय होते हैं। इसमें आप अपनी व्यक्तिगत राय को उतनी तवज्जह देकर सामूहिक विचार पर ज़ोर देते हैं, जबकि अप्रत्याशित विषयों पर लेखन में आपके अपने निजी विचार होते हैं।

·        अप्रत्याशित विषयों पर लेखन से लाभ-

1  ये आपकी मौलिक रचना होगी।

2 इसमें आप अपने विचारों को किसी तर्क, विचार के माध्यम से पुष्ट करने की कोशिश करेंगे।

3 इससे आपके लेखन कौशल में अत्यधिक विकास होगा।

4 इससे भाषा पर आपकी अच्छी पकड़ बनेगी।

5 अप्रत्याशित विषयों पर लेखन कम समय में अपने विचारों को संकलित कर उन्हें सुंदर और सुघड़ ढंग से अभिव्यक्त करने की चुनौती है।

 

·        अप्रत्याशित विषयों पर लेखन के विषय क्या हो सकते हैं?

ये विषय कुछ भी हो सकते हैं, जैसे- झरोखे से बाहर, सावन की पहली झड़ी, परीक्षा के दिन, मेरे मुहल्ले का चौराहा, मेरा प्रिय टाइम पास आदि |

·        अप्रत्याशित विषयों पर लेखन के नियम-

1 आप इसमें मैं शैली का प्रयोग कर सकते हैं।

2 विविध कोणों से विषय पर विचार कर लें।

      3 विवरण और विवेचन सुसंबद्ध और सुसंगत हो।

4 भाषायी शुद्धता पर विशेष ध्यान दें।

5 मौलिकता और रचनात्मकता दिखाएं।

6 अपने मन की बात लिखें, अपने ढंग से

7 प्रभावी भाषा और प्रवाह को बनाएंगे।

 

नए और अप्रत्याशित विषय पर लेखन का उदाहरण

 पापा का जन्मदिन पर उपहार

उपहार किसे प्यारे नहीं लगते | मैं पूरे वर्ष अपने जन्मदिन का इंतजार करता ताकि ढेर सारे उपहार मुझे मिल सकें  | मैं हमेशा मार्च महीने का इंतजार  बेसब्री से करता हूँ और अब वह आरंभ हो चुका है | वैसे तो मार्च में परीक्षा का भय लगा रहता है लेकिन मैं होनहार विद्यार्थियों में से एक हूँ तो मुझे अपने जन्मदिन की फ़िक्र रहती है न कि परीक्षा की |

कल मेरा जन्मदिन है और चौबीस घंटे का समय मेरे लिए व्यतीत करना कौतूहल से भरा है | माँ और बड़ी दीदी मेरे जन्मदिन की तैयारी के लिए सामान लेने बाज़ार गई हैं| दीदी को मेरा टेस्ट पता है इसलिए पक्का वह चॉकलेट केक का ही ऑर्डर देगी | वैसे वह मुझसे लड़ती बहुत है पर मुझे लाड भी बहुत करती है | माँ ने मुझे एक अच्छी ड्रेस देने का वादा किया था | मेरे कपड़ों का चयन माँ ही करती है और मुझे वे अच्छे भी लगते हैं | मेरे बहुत सारे दोस्त भी हैं और उन सभी को कल मैंने आमंत्रित किया है | वे सभी मेरे लिए एक से एक अच्छे उपहार लेकर आते हैं और जब मैं उनके दिए उपहारों को एक-एक करके खोलता हूँ तो वह समय मेरे लिए बड़ा उत्सुकता का होता है | लो, एक ख़ास व्यक्ति को तो मैं भूल ही गया और वह हैं मेरे पापा | पर उनके द्वारा दिया जाने वाला उपहार मेरे लिए अभी रहस्य बना हुआ है |

आज मेरा जन्मदिन है और केक काटने की लगभग सभी तैयारियाँ हो चुकी हैं| मेरे सभी दोस्त आ चुके हैं और उनके हाथों में मेरे लिए रंग-बिरंगे गिफ्ट पेपर में पैक किए गए उपहार भी हैं पर पापा का उपहार नज़र नहीं आ रहा | वे खाली हाथ खड़े हैं | कहीं वे मेरा उपहार लाना भूल तो नहीं गए | नहीं, ऐसा  नहीं हो सकता | खैर, माँ ने अब केक काटने के लिए कहा और मेरे सभी दोस्त मेरे इर्द-गिर्द इकट्ठे हो गए | केक काटने के साथ ही सभी मुझे जन्मदिन की बधाइयाँ देने लगे और मेरे हाथ उपहारों से भर गए  पर, पापा कहीं गायब थे | कुछ ही पलों में पापा मेरे सामने प्रकट हुए अपने उपहार के साथ, जिसे देखकर मैं हैरानी के साथ-साथ बहुत उत्सुक भी था और वह थी – साइकिल | सभी के उपहार बड़े प्यारे थे लेकिन मेरे इस जन्मदिन पर मेरे लिए पापा का दिया गया उपहार सबसे प्यारा था |

 

 

अभ्यास हेतु नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन हेतु कुछ सुझावात्मक विषय

यह सच है कि इस तरह के लेखन के लिए विषय का कोई निश्चित दायरा नहीं तय किया जा सकता फिर भी छात्रों के अभ्यास के लिए कुछ विषय दिए जा रहे हैं जो उनके लेखन क्षमता को परखने एवं बेहतर बनाने में मददगार साबित होंगे-

·         ऑनलाइन परीक्षा का मेरा पहला अनुभव

·         पढाई ऑनलाइन लेकिन परीक्षा ऑफ़ लाइन

·         लॉकडाउन के दौरान दिन रात घर की चार दीवारी में कैद जीवन

·         सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग की समस्या

·         आज के समय में कुछ भी व्यक्तिगत नहीं है

·         इस देश में चुनाव एक उत्सव है

·         गरीब के जीवन की कोई कीमत नहीं होती !

·         मैं अंतरिक्ष में जाऊँगा तो...

·         आजादी की 100वीं वर्षगाँठ पर मेरा देश मेरी नज़र से

 

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