ईश्वर धरती पर हर जगह नहीं पहुँच सकता इसलिए धरती पर ‘माँ’ को बनाया। आज ‘मदर्स डे’ है; आज की भौतिकवादी एवं पूँजीवादी दुनिया में व्यक्ति मशीन बनता जा रहा है, संवेदनाएँ ‘मशीन’ की भेंट चढ्ती जा रही हैं। नित्य संवेदनाओं की घटती के बीच आज भी माँ के प्रति लगाव कमोबेश विद्यमान है।इस पुनीत दिवस पर मेरे व मुझ जैसों की ओर से स्मृति स्वरूप...
क्या होती है माँ की ममता
माँ की ममता को समझ सकता है वही
जो है इससे महरूम
वो क्या खाक समझेंगे
माँकी ममता का महत्तव
जिनकी भोर होती है माँके वरदहस्त तले
दुपहरी जिनकी कट जाती है
माँ के आँचल की शीतल छाँव में
निशा की कालिमा से दूर
रात्रि जिनकी बीत जाती है
माँ की स्नेहमयी गोद में।
अरे! पूछो मुझ अभागे से
क्या होती है माँ की ममता
स्निग्ध ममता के महत्तव को
समझ सका था ना मैं भी
उस पुण्यात्मा की छत्रछाया
थी जबतक मेरे ऊपर
जा बैठी रश्मि किरणों के रथ पर
चल पडी स्वर्ग की राह
रास न आया मुझे माँ का स्वर्ग जाना
मैं स्वार्थी चिल्ला पडा
माँ... माँ.... माँ.....
न जा तू छोड मुझे,न बना अनाथ मुझे
कौन खिलाएगा अपने हाथों से खाना मुझे
कौन फेरेगा स्नेहमयी हाथ मेरे माथे पर
कौन देगा गोद मुझे अब
कहाँ मिलेगी मुझे वो थपकी
कौन कहेगा सो जा मेरे मुन्ने राजा
रात बहुत अब हो गयी है।
माँ ने मेरा क्रंदन न सुना
हो गई वह स्वर्गासीन
मुझे समझ आया तब
क्या होती है माँ की ममता
संभल जाओ,
संभल जाओ ए माँ की संतानों
कर दो न्योछावर जान अपनी
क्योंकि है वो तुम्हारी जननी
वरना,पछताओगे तुम भी मेरी तरह
हाय! कर न सका कुछ माँ के लिए
चित्कार कर उठोगे
जिस माँ ने मुझे लहू से सींचा
अंत समय उसे जल भी न दे सका
तब आएगी तुम्हें भी समझ
क्या होती है माँ की ममता।
Sunday, May 10, 2009
Wednesday, May 6, 2009
प्यारे बच्चे
नन्हे- मुन्ने प्यारे बच्चे
माँ की आँखों के तारे ये
पापा के राजदुलारे बच्चे
दादा- दादी के दिल की
धड़कन होते सारे बच्चे
गुरू के देखे सपनों को साकार करते न्यारे बच्चे
प्रात नभ में उगे सूरज से
हर दिल रौशन करते बच्चे
भेद-भाव से भरी दुनिया में
सबको एक बनाते बच्चे
नन्हे- मुन्ने प्यारे बच्चे
माँ की आँखों के तारे ये
पापा के राजदुलारे बच्चे
दादा- दादी के दिल की
धड़कन होते सारे बच्चे
गुरू के देखे सपनों को साकार करते न्यारे बच्चे
प्रात नभ में उगे सूरज से
हर दिल रौशन करते बच्चे
भेद-भाव से भरी दुनिया में
सबको एक बनाते बच्चे
नन्हे- मुन्ने प्यारे बच्चे
पे कमीशन की हवा चली
पे कमीशन की हवा चली
सरकारी बाबुओं के तन में झुरझुरी उठी
साहबानों के मन में गुदगुदी उठी
’पे’ के तीन- चार गुना होने की उम्मीद जगी
और सरकारी कर्मचारियों की बाँछें खिल उठीं
प्रिय लगते अखबारों- चैनलों ने खबर सुनायी
’माननीय’ अध्यक्ष ने ‘जनसेवक’ मंत्री जी को
छठे पे कमीशन की रिपोर्ट थमायी
चारों तरफ अफ़रा-तफ़री मच गई
’जनता’ काम छोड पे जोडने में मस्त हुई.
पर पे कमीशन ने सबको है भरमाया
बाहर से खुश कर अंदर से डराया
मीडिया ने नए पे स्केल को जन-जन तक पहुँचाया
सरकारीजनों की भ्रांतियों को यथासंभव दूर भगाया
पर पे स्केल ने फिर सबको मायूस किया.
अजब है पे कमीशन की ये माया
आने से पहले सरकारीजनों को गुदगुदाती है
और आ जाने के बाद उन्हीं को रुलाती है
टूट जाते हैं सबके अपने प्रिय सपने
अकडता तन ढीला पड जाता है
मन में गुदगुदी की जगह आक्रोश छा जाता है.
यूनियनों के झण्डे- बैनर खडखडाने लगते हैं
अजीब है पैसे की ये माया
उरमू- नरमू, सीटू- डूकू, एटक- इंटक
सभी बैर भाव भूल जाते हैं
पैसे की खातिर सभी एक छतरी में आ जाते हैं.
सरकारी बाबू- बाबुआनों के मन बुझ जाते हैं
सपनों की दुनियाँ से निकल हकीकत में आ जाते हैं
फिर सभी पेंडिंग फाईलों में समा जाते हैं
पे कमीशन का गुस्सा फाईलों पर उतार जाते हैं
कमीशन से ‘जनकल्याण’ न होता देख
सभी अपने ‘धंधों’ में फिर से जुट जाते हैं.
पर उम्मीद का दामन अभी भी छूटा नहीं है
पे कमीशन का सपना पूरी तरह टूटा नहीं है
कभी तो कमीशन आसमां से ठोस धरती पर आएगी
और अपनी रपट धरतीपुत्रों के लिए बनाएगी
कभी तो वह चिरप्रतीक्षित सुखद दिन लाएगी
तब अन्दर से गुदगुदाएगी, बाहर से भी हँसाएगी
आँकडों की बाज़ीगरी से ऊपर उठकर
जन- जन के आँगन में खुशियों के फूल खिलाएगी.
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सरकारी बाबुओं के तन में झुरझुरी उठी
साहबानों के मन में गुदगुदी उठी
’पे’ के तीन- चार गुना होने की उम्मीद जगी
और सरकारी कर्मचारियों की बाँछें खिल उठीं
प्रिय लगते अखबारों- चैनलों ने खबर सुनायी
’माननीय’ अध्यक्ष ने ‘जनसेवक’ मंत्री जी को
छठे पे कमीशन की रिपोर्ट थमायी
चारों तरफ अफ़रा-तफ़री मच गई
’जनता’ काम छोड पे जोडने में मस्त हुई.
पर पे कमीशन ने सबको है भरमाया
बाहर से खुश कर अंदर से डराया
मीडिया ने नए पे स्केल को जन-जन तक पहुँचाया
सरकारीजनों की भ्रांतियों को यथासंभव दूर भगाया
पर पे स्केल ने फिर सबको मायूस किया.
अजब है पे कमीशन की ये माया
आने से पहले सरकारीजनों को गुदगुदाती है
और आ जाने के बाद उन्हीं को रुलाती है
टूट जाते हैं सबके अपने प्रिय सपने
अकडता तन ढीला पड जाता है
मन में गुदगुदी की जगह आक्रोश छा जाता है.
यूनियनों के झण्डे- बैनर खडखडाने लगते हैं
अजीब है पैसे की ये माया
उरमू- नरमू, सीटू- डूकू, एटक- इंटक
सभी बैर भाव भूल जाते हैं
पैसे की खातिर सभी एक छतरी में आ जाते हैं.
सरकारी बाबू- बाबुआनों के मन बुझ जाते हैं
सपनों की दुनियाँ से निकल हकीकत में आ जाते हैं
फिर सभी पेंडिंग फाईलों में समा जाते हैं
पे कमीशन का गुस्सा फाईलों पर उतार जाते हैं
कमीशन से ‘जनकल्याण’ न होता देख
सभी अपने ‘धंधों’ में फिर से जुट जाते हैं.
पर उम्मीद का दामन अभी भी छूटा नहीं है
पे कमीशन का सपना पूरी तरह टूटा नहीं है
कभी तो कमीशन आसमां से ठोस धरती पर आएगी
और अपनी रपट धरतीपुत्रों के लिए बनाएगी
कभी तो वह चिरप्रतीक्षित सुखद दिन लाएगी
तब अन्दर से गुदगुदाएगी, बाहर से भी हँसाएगी
आँकडों की बाज़ीगरी से ऊपर उठकर
जन- जन के आँगन में खुशियों के फूल खिलाएगी.
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