काश!अगर मै नन्हा होता
काश !अगर मै नन्हा होता
माँ की आँखो का तारा
पिता का प्यारा
सारे घर का दुलारा होता
माँ की गोद मे सुबह
उन्मुक्त गगन तले शाम होती
मेरा वो प्यारा गाँव होता
हरे भरे वो खेत
वही पुरानी पगडंडियाँ होती
गिरता पडता उनपर मै
तितलियो के पीछे भागा करता
काश !अगर मै नन्हा होता
न झूठी बौधिकता आती
न डिग़्रियो का भार ढोता
न बेकारी का शाप होता
न कोई हिन्दू न कोई मुस्लिम
न कोई सिक्ख,ईसाई होता
सारे अपने होते
कोई न पराया होता
काश !अगर मै नन्हा होता
न बोफोर्स न प्रतिभूति
न हवाला और न चारा कांड होता
न ही भारत माँ का खद्दरधारी बेटा
अपनी माँ का ही दलाल होता
न झारखंड की माँग होती
न उत्तराखंड विरान होता
न कश्मीर की खूनी होली होती
न खालिस्तान का भयावह इतिहास होता
सारा भारत अपना होता
काश! अगर मै नन्हा होता
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1 comment:
अच्छी अभिव्यक्ति।।
ऐसा शायद ही कोई वयस्क होगा जो बचपन में वापस न लौटना चाहता हो।
लिखते रहें।
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