Friday, January 22, 2010

रेणु के जीवन के दो सच

  सर्वप्रथम हिन्दी दैनिक हिन्दुस्तान को साधुवाद एवं धन्यवाद!आज के व्यावसायिक दौर मंल जहाँ खबरें भी बाजारवादी हो गई हैं ऐसे दौर में इस दैनिक पत्र द्वारा देश के महान साहित्यकारों से जुडी खबरें प्रमुखता से प्रकाशित करना रेगिस्तान में नखलिस्तान बनाने जैसा है। 
  महान क्रांतिकारी, राजनैतिक चेतना संपन्न व्यक्तित्व, आंचलिकता के प्रणेता एवं कथाशिल्पी –फ़णीश्वरनाथ ‘रेणु’ ने वही सिरजा जिसे देखा और भोगा। ऐसे विरले कथाकार के निधन के लंबे अंतराल के बाद चौंकाने वाली दो खबरें ‘हिन्दुस्तान’ के द्वारा हम तक पहुँची ।पहली खबर-पद्मा रेणु एवं लतिका जी का मिलन जैसे गंगा-यमुना का मिलन। इस खबर ने सभी साहित्यप्रेमियों को सुखद आश्चर्य से ओत-प्रोत कर दिया। इन दोनों का मिलन यह दिखाता है कि उनपर रेणु जी के व्यक्तित्व का गहरा प्रभाव है जिन्होंने स्व से ज्यादा समाज को महत्व दिया था। साथ ही,रेणु जी के व्यक्तित्व व कृतित्व में कई नए आयाम जुडेंगे। 
  लेकिन दूसरी खबर ‘रेणु जी के इलाज़ में बरती गई थी लापरवाही’ सभी चेतनशील जनों के हृदय को गहरा आघात पहुँचाता है। यह एक स्तब्धकारी सत्य है जो क्षण भर के लिए मुझे चेतनशून्य कर गया। रेणु जैसे लब्ध प्रतिश्ठित साहित्यकार के साथ पी एम सी एच के डॉक्टरों, अस्पताल प्रशासन द्वारा ऐसा रवैया समाज में साहित्यकारों के प्रति संवेदनहीनता व अमानवीयता को तो दर्शाता ही है, साथ ही वी आई पी के प्रति उनकी चाटुकारिता को भी उजागर करता है। धरती पर भगवान के प्रतिरूप माने जाने वाले डॉक्टर भी मरीजों से पद-पैसा के अनुसार भेद –भाव करते हैं। उनका यह कृत्य न सिर्फ अपने पेशे के प्रति जघन्य अपराध है बल्कि मानवता के प्रति भी अपराध है और एक मरीज के विश्वास की हत्या भी है।
  डॉक्टरों द्वारा रेणु के इलाज में लापरवाही से असमय ही हिन्दी साहित्य-जगत का एक महान सर्जक सदा के लिए हमसे जुदा हो जाता है और साहित्य जगत भविष्य में होनेवाले उनके महान सृजन से भी वंचित हो जाता है।यह हर दृष्टि से घोर अपराध है और प्रत्येक साहित्य-प्रेमी इसकी घोर भर्त्सना करते हुए समुचित न्याय के लिए पद्मा रेणु व लतिका जी के साथ है।
डॉ. शुभ, के. वि. कंकडबाग, पटना

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